“पाकिस्तान ने धर्म को बनाया हथियार, भारत को सम्मान को बनाना होगा शक्ति का स्रोत”-लेफ्टिनेंट कर्नल जी.पी.एस विर्क

नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय सेना की वायु, थल और जल शक्ति का व्यापक प्रदर्शन किया। यह एकीकृत युद्ध क्षमता का प्रतीक था, परंतु यह भी राजनीतिक भाषणों और चुनावी लाभ की होड़ में दबकर रह गया। यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि क्या यह अभ्यास किसी रणनीतिक लक्ष्य को प्राप्त कर पाया, या यह केवल एक हाई-टेक प्रदर्शन बनकर रह गया, जिसे नौकरशाहों और नेताओं ने डिज़ाइनर टोपी और नेहरू जैकेट पहन कर देखा?

वहीं, पाकिस्तान ने सैन्य मानसिकता को धार्मिक और रणनीतिक तरीकों से सक्रिय किया है। हाल ही में मियां मुनीर को फील्ड मार्शल बनाए जाने और आर्थिक संकट के बावजूद IMF से मिल रहे अरबों डॉलर के कर्ज से यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान इस्लाम को और सेना की एकता को हथियार बनाकर अपने सैन्य ढांचे को मजबूत कर रहा है। उनकी छावनियां और भूमि संपत्तियां सुरक्षित हैं, और मनोबल उच्चतम स्तर पर है।

इसके विपरीत, भारत की सेना बंटवारे और मनोबल की कमी से जूझ रही है। “मिट्टी के सच्चे सपूत” राजनीतिक निष्क्रियता और अफसरशाही के दबाव में पिस रहे हैं। अग्निवीर योजना संरचनात्मक रूप से भले ही नवीन हो, पर इसमें दीर्घकालिक प्रेरणादायक उपायों की कमी है। पेंशन, चिकित्सा और सेवानिवृत्ति के बाद की गरिमा के बिना, वह सम्मान समाप्त हो रहा है जो सैनिकों के मनोबल का मूल है।

**तीन श्रेणियों के लेफ्टिनेंट कर्नल इस गिरावट की गवाही देते हैं:**

1. शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी जिन्हें पेंशन नहीं मिलती।
2. चयन ग्रेड लेफ्टिनेंट कर्नल जिनकी पेंशन कम कर दी गई है।
3. टाइम-स्केल लेफ्टिनेंट कर्नल/मेजर जिन्हें 2006 के बाद से समान रूप से नुकसान उठाना पड़ा।

इन सभी ने वर्दी पहनी, अनुच्छेद 33 के तहत प्रशिक्षण लिया (जो उनके मूल अधिकारों को सीमित करता है), और अब अनुच्छेद 14 और 16 के तहत समानता से वंचित हैं। वहीं, सिविल सेवकों को अनुच्छेद 311 का संरक्षण प्राप्त है। यह असमानता सैनिक जीवन को मौन बलिदान और सेवानिवृत्ति को एक भूला हुआ अध्याय बना रही है।

**यदि पाकिस्तान ‘कलमा’ के नाम पर सैनिकों का मनोबल बढ़ा सकता है, तो भारत अपने संविधान के समानता, न्याय और सम्मान के सिद्धांतों को क्यों नहीं अपना सकता?**

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब नारे नहीं, बल्कि ठोस निर्णय लेने होंगे:

* सभी सैनिकों के लिए OROP (SSCOs, अग्निवीर सहित) लागू किया जाए।
* अग्निवीरों को 5–10 वर्षों की शॉर्ट सर्विस में नियमित किया जाए।
* सेवानिवृत्त रैंकों में भेदभाव समाप्त किया जाए।
* सम्मान की कोई समाप्ति तिथि नहीं होनी चाहिए।

रक्षा बजट में इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इससे न केवल मनोबल बढ़ेगा, बल्कि भर्ती, राष्ट्रीय एकता और भारत की सैन्य स्थिति भी सशक्त होगी। यह एक “रामबाण नीति” सिद्ध हो सकती है—राजनीतिक, सैन्य और नैतिक रूप से।

यदि भारत की सेना को केवल चुनावी प्रदर्शन का औजार समझा जाता रहा, तो सैनिक बनना अंतिम विकल्प बन जाएगा। परंतु यदि हर सैनिक को—चाहे वह पूर्व हो, वर्तमान हो या भविष्य का—राष्ट्रीय संपत्ति माना जाए, तो भारत deterrence के साथ dignity में भी आगे बढ़ेगा।

अब निर्णय भारत को करना है: क्या उसके सैनिकों का नेतृत्व दूरदर्शी करेंगे या राजनेता उन्हें सौदे का हिस्सा बनाएंगे?

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