यूथ फॉर स्वराज के 3 जून से शुरू हो रहे अगले चरण में मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा व महाराष्ट्र के गाँव जायेंगे प्रतिभागी।

न्यू दिल्लीन्यूज़ नॉलेज मास्टर,(NKM),एक ऐसे समय में जब कृषि संकट देश का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन चुका है, यूथ फ़ॉर स्वराज (Y4S) ने इस संकट को समझने और उसके हल को लेकर एक अनूठी पहल की है। लगातार दो वर्षों तक सफलता पूर्वक ‘ड्रॉट ड्यूटी’ अभियान चलाने के बाद इस वर्ष यूथ फ़ॉर स्वराज (Y4S) ने ‘तलाश भारत की.. ‘ अभियान की शुरुआत की, जिसके तहत देश भर के विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों का तीन दल अब तक गंगानगर(राजस्थान), बुंदेलखंड(मध्यप्रदेश) व बीड(महाराष्ट्र) के गाँव की यात्रा कर चुके हैं।

गंगानगर, राजस्थान :

जहाँ एक तरफ युवजनों में वास्तविक स्थिति से परिचित होने का संतोष था तो दूसरी ओर व्याप्त कुव्यवस्था व बदहाली को देखकर क्षोभ भी था। विकास के बड़े-बड़े दावों में उन्हें भारी खोखलेपन का एहसास हुआ। वे मनरेगा मजदूरों से भी मिले, 33जीजी व आसपास के गाँवों में सर्वेक्षण भी किया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की समझ बनाने के लिए उन्होंनें किसानों की लागत व मिलने वाले मूल्य का गणन किया। उन्हें यह तथ्य अचंभित कर देने वाला लगा की किसानों की आमदनी लगभग न के बराबर है और उन्हें एहसास हुआ की किसानों को उनकी फसल का MSP मिलना कितना आवश्यक है।

विद्यार्थियों ने उस इलाके के पानी के प्रमुख श्रोत वहां की नहरों में बह रहे प्रदूषित पानी का भी जायजा लिया। पंजाब के कुछ शुगर उद्योगों द्वारा दूषित पानी नहरों में छोड़ दिया जाता है, जो किसान के खेतों से होते हुए हमारी खाद्य श्रृंखला का हिस्सा बन चुका है। असंख्य बार किसानों ने प्रशासन का ध्यान इस ओर खींचने की कोशिश की पर प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया I लगता है जब तक तमिलनाडु जैसी कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना ना घाट जाए सरकार और प्रशाशन का ध्यान इस ओर नहीं जायेगा I

छत्तरपुर, मध्यप्रदेश :

सूखे से प्रभावित रहने वाला बुंदेलखंड इस वर्ष भी सूखाग्रस्त है। ’18वीं और 19वीं सदी के दौरान बुंदेलखंड में हर 16 साल बाद सूखे का दौर आता था और तत्कालीन चंदेल वंशज के राजाओं ने इससे निपटने के लिए कई पोखर तालाब बनाये थे। लेकिन 1968 से 1992 के बीच सूखे की अवधि में तीन गुने का इज़ाफा हुआ है। इसकी सबसे करारी मार 25 फीसदी दलित और आदिवासी तबके पर पड़ी है ।

आप जैसे ही टीकमगढ़ से निकलकर छतरपुर की ओर बढ़ेंगे, आपको सड़क के दोनों तरफ खड़खड़ाते क्रेशर और उड़ती धूल नजर आएगी। एक समय बुंदेलखंड का 37 पीसदी से बड़ा इलाका बियाबान था। यहां की पहाड़ियां लंबे, ऊंचे’ पेड़ों से ढंकी थी। आज इस छेत्र में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में आया बदलाव असल में तेजी से खत्म होते जंगलों के कारण है। ये जंगल धरती के लाखों वर्षों के विकास क्रम का नतीजा है। ये जंगल बारिश को खींचते हैं। पेड़ के हर पत्ते में पानी संग्रहित होता है। सूर्य की किरणें जब इन पर पड़ती है तो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के साथ ही वाष्पीकरण भी होता ‘ है। यह पारे की चाल पर लगाम लगाता है। छात्रों ने पाया की सूखे से निपटने के लिए स्वदेशी तकनीक की तरफ रुख करने की जरुरत है, बुंदेलखंड में सरकार पेड़ लगा कर नहीं बच सकती उससे जंगल विकसित करने होंगे। तालाब और नदी नालों को पुनर्जीवित करना होगा। अवैध खनन रोकना होगा। बुंदेलखंड की ये दशा प्राकृतिक नहीं, मानव द्वारा रचित है।

बुंदेलखंड पैकेज के सहारे बने सूखे कुओं और मंडिओं को भी देखाI विद्यार्थिओं को यह जान कर आश्चर्य हुआ की जब बुंदेलखंड सूखे की मार झेल रहा था तो सरकार करोड़ों रूपये मंडिओं के निर्माण पर लगा रही थी I बाल-मजदूरी इलाके के लिए आम है तो वहीँ शिक्षा व्यवस्था विल्कुल वेहाल है। ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है और सरकार द्वारा उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं के नितान्त अभाव के कारण मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी शहर जाना पड़ता है। मनरेगा मजदूरों को का जॉब कार्ड तो बना हुआ परन्तुं उसके तहत मिलने वाला काम नदारथ हैं I राशन कार्ड अधिकांश लोगों को प्राप्त है कमोवेश राशन भी मिल जाता हैI विद्यार्थियों ने पाया की अगर सरकार इस इलाके के पर्यावरण संकट को दूर करने के तुरंत उपाय नहीं करती है तो कुछ दिनों में यह इलाका रहने लायक नहीं रह पाएगा।

परली, महाराष्ट्र :

इस इलाके में पानी का संकट सबसे गंभीर है जिसका असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर साफ़-साफ़ दीखता हैI गंभीर जल संकट के कारण कृषि की उत्पादकता बेहद कम है। पानी फाउंडेशन और ग्लोबल परली द्वारा इलाके के जल संकट को दूर करने का किया जा रहा प्रयास सराहनीय है। जल संरक्षण में स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा विकसित करने के लिए वाटर कप का आयोजन किया जा रहा जा है। चेक डैम, ग्राउंड पीट, नदिओं का चौड़ीकरण, Alternative Cropping तथा वाटर बजट जैसे मुहीम सरकारी, निजी और सामूहिक सहयोग का अनूठा उदाहरण पेश कर रहा है ।

इलाके में मनरेगा में दी जाने वाली मजदूरी बेहद कम होने के कारण (यथा ₹100 – ₹150) कोई मनरेगा के लिए काम नहीं करना चाहता। संगठित क्षेत्रों में नौकरियों के भारी अभाव के कारण नौकरियों को लेकर सामूहिक निराशा का भाव है। हालांकि उच्च शिक्षा का मौका और उनकी गुणवत्ता भी युवाओं में नौकरी के मौके को धूमिल करता है। बीटी कॉटन की फसल में कीड़े का लगना इस हाइब्रिड बीज और उसे विकसित करने वाली कम्पनिओं के ऊपर सवाल खड़े कर रहा है I लोगों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की कोई जानकारी नहीं है, अतः कम लोग इसका फायदा ले पा रहे हैं । अत्यधिक जटिल कागजी प्रक्रिया के कारण 1 लाख तक के कर्ज़ की माफी की सरकार की घोषणा का लाभ किसान नहीं उठा पा रहे हैं। स्वच्छ भारत योजना के बावजूद, गाँव में जल संकट के कारण सैनिटेशन की अनदेखी होती दिख रही थी I

यूथ फ़ॉर स्वराज (Y4S) की यह अनूठी पहल देश के उन इलाकों में जाकर वहाँ की समझ विकसित करने से संबंधित है जो इलाके महानगरीय कल्पना से भी बाहर हैं पर जो आज भी हिन्दुस्तान का अभिन्न व विशाल हिस्सा हैं। इसके बावजूद कि विद्यार्थी अपने किताबों में पढ़ते हैं कि असल भारत गाँवों में रहता है और कृषि इस देश का मेरुदंड है, वो अपने दैनिक जीवन में इतने मशगूल हैं कि उन्हें अपने ही देश में रहने वाले लोगों के अस्तित्व-मात्र का भी बोध नहीं रहता I यह बढ़ती संवेदनहीनता और भारत व इंडिया के बीच की बढ़ती दूरी गंभीर परिणामों को जन्म दे रही है और इस बढ़ती खाई को अविलंब पाटने की जरूरत है। हालांकि वर्तमान की मुख्यधारा की राजनीति और उसकी चिंताओं और कृत्यों को देखते हुए उससे इस गंभीर समस्या के हल के लिए कदम उठाने की आशा करना नितान्त बेईमानी हैI ऐसे में वैकल्पिक राजनीति खड़ा करने में प्रयासरत लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वो सार्थक प्रयास करें।

संक्षेप में, ‘तलाश भारत की… ‘ अभियान की शुरुआत देश के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बढ़ती दूरी व आपसी समझ की कमी को दूर करने के लिए की गई है। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के बीच बढ़ती खाई युवजनों के मन में उनकी जड़ों, उनकी पहचान, उनके राष्ट्रीय अस्मिता व देश की दिशा को लेकर संशय उत्पन्न कर रही है। वैकल्पिक राजनीति के सपने को लेकर आगे बढ़ रहे नव गठित छात्र-युवा संगठन यूथ फ़ॉर स्वराज (Y4S) द्वारा इस अभियान के माध्यम से इसी खाई को पाटने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रोग्राम के तहत छात्र-छात्रा 8 से 10 लोगों के समूह में सात दिनों तक एक गाँव में रहते हैं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था व कृषि संकट की समझ बढ़ाने के साथ-साथ ग्रामीण संस्कृति को भी समझते हैं और सरकारी योजनाओं का भी मूल्यांकन करते हैं।

यूथ फ़ॉर स्वराज (Y4S) रचनात्मक राजनीति द्वारा राष्ट्र निर्माण को लेकर प्रतिबद्ध है और अपनी पूरी ऊर्ज़ा वैकल्पिक राजनीति के लिए नेतृत्व तैयार करने में लगा रहा है।

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