सौरभ मालवीय के “राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में हिन्दी पत्रकारिता” पर चर्चा और पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में मीडिया मठाधीशों में गर्मा-गर्म बहस

दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में आयोजित “राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में हिन्दी पत्रकारिता” विषय पर आयोजित एक परिसंवाद और पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में मीडिया के मठाधीशों में जमकर बहस हुई। अक्सर आपने समाचार चैनल्स पर हिन्दी पत्रकारिता जगत के इन बड़े बड़े पत्रकारों को सियासी दलों के नेताओं को अपने सवालों में घेरते देखा होगा। इस कार्यक्रम में यह दिग्गज एक दूसरे को सवालों में घेरते दिखाई दिए। मौजूदा दौर में पत्रकारिता तेज़ी से बदल रही है। विशेषकर देश की राष्ट्रभाषा कही जाने वाली हिन्दी भाषा अपने ही देश मेे दोयम दर्जे की भाषा बन कर रह गई है। इस कार्यक्रम मे हिन्दी समाचार चैनल्स के कई जाने माने पत्रकारों ने शिरकत की। कार्यक्रम का आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविधालय मे प्रधायपक सौरभ मालवीय,पत्रकारों और पत्रकारिता पर काम करने वाली संस्था मीडिया स्केन ने इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के साथ मिलकर इस कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम मे मंच का संचालन अाज तक चैनल के जाने माने एंकर सईद अंसारी ने किया । वहीं ज़ी हिन्दुस्तान के संपादक ब्रजेश सिंह और हाल ही में टीवी पत्रकारिता से बीबीसी के वेब पोर्टल को ज्वाईन करने वाली सरोज सिंह और दैनिक भास्कर के संपादक आनंद पांडेय और सईद अंसारी में जोरदार चर्चा हुई। जहां सरोज सिंह ने IIMC में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान अंग्रेजी मीडियम से पढ़ने वाले पत्रकारों के व्यवहार पर चर्चा की। वहीं नौकरी के दौरान भी अंग्रेजी न जानने वाले हिन्दी पत्रकारो के सामने आने वाली व्यवहारिक कठिनाईयों पर चर्चा करते हुए जोर दिया कि मौजूदा समय में पत्रकारिता में बने रहने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान कितना ज़रुरी है।
चर्चा में गर्माहट तब आई जब पत्रकारिता के सिद्दान्त और व्यवहार पर ये दिग्गज एक दूसरे पर सवाल उठाते हुए दिखाई दिए। ब्रजेश सिंह ने जब यह कहा कि पहले के पत्रकार कोई दूध के धुले हुए नहीं थे उन्होनें भी अपनी पत्रकारिता में मुल्यों से समझोते किए हैं। सईद अंसारी ने ब्रजेश सिंह का जमकर विरोध किया। खैर अकसर दूसरों को सवालों मे घेरने वाले पत्रकार जब एक दूसरे को घेरते और घिरते देख,कार्यक्रम में मौजूद पत्रकारिता के विधार्थी ज़रुर मज़ा लेते दिखे। पर एक सवाल ज़रुर उस सभा मेे तैरता नज़र आ रहा था। पत्रकारिता के विधर्थी कहीं कश्मकश मे दिखाई दे रहे थे कि वे सईद अंसारी के नैतिकता और मुल्य की पत्रकारिता को देखें या फिर ब्रजेश सिंह के अनुभवों से जु़ड़ी पत्रकारिता के बाज़ारीकरण को देखें। सौरभ मालवीय और उनके मित्रों द्वार आयोजित कार्यक्रम ज़रुर सफल रहा। विशेषरुप से मालवीय ने अपने छोटे से संबोधन में बड़ी सारगर्भित बात कही कि इस कार्यक्रम मे हमने किसी वरिष्ठ या कनिष्ठ पत्रकार की श्रेणी में रखकर किसी को निमंत्रण न देकर सिर्फ पत्रकारों को बुलाया है क्योकि पत्रकार पत्रकार होता है वरिष्ठ या कनिष्ठ नहीं। न्यज़ नॉलेज मास्टर-एनकेएम का मानना है कि इस प्रकार के सार्थक कार्यक्रमों-संंगोष्ठियों का आयोजन मीडिया स्केन को भविष्य में करते रहना चाहिए।इस मीडिया मंथन से निकलने वाला अमृत और विष दोनों ही लोकतंत्र के चौथे सतंभ की बिगड़ती सेहत में सुधार के लिए ज़रुरी है।

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