कोरोना से बचने के लिए प्रधानमंत्री की खींची लक्षमण रेखा को पार करने का क्या होगा परिणाम
न्यूज़ नॉलेज मास्टर कोरोना के चलते देश भर में लॉकड़ाउन है…लेकिन कारोना संकट की सबसे बडी मार गरीब इंसान पर पडती दिखाई दे रही है…दिल्ली में काम करने वाले ह़ज़ारों की संख्या में मज़दूर,दिहाड़ीदार,बेघर गरीब लोगों ने अपने अपने प्रदेशों का रुख किया है…ऐसी ही तस्वीरें दिल्ली उत्तर प्रदेश के बॉर्ड़र पर दिखाई दे रही है…जिसमें ब़डी संख्या में लोग अपने कंधो पर बच्चों के साथ पैदल ही अपने अपने घरों की तरफ जाते दिखाई दे रहे हैं…मीडिया में मज़दूरों की इस बदहाली पर रिपोर्टेस दिखाई जाने के बाद सरकार और प्रशासन हरकत में आई और आनन फानन में इन मज़दूरों को घर तक पहुंचाने का फैसला किया है…अब प्रदेश की योगी सरकार ने एक हाज़ार बसें इस काम में लगा दी हैं…
लॉकड़ाउन के बीच यह तस्वीरें क्या कहती है…इससे सवाल उठता है क्या सोशल डिस्टेंसिंग का उद्देश्य इस तरह से पूरा हो पायेगा..जिस तरह से बसों में भेड़ों की तरह इन्हें लाद लाद कर ले जाया जा रहा है…क्या इससे कोरोना वायरस पर रोक लगेगी ? खबरें आ रही है कि कुछ मज़दूर भी कोरोना से संक्रमित पाये गये हैं…अगर दिल्ली और अन्य महानगरों से प्लायन कर अपने गांव कसबों में जाने वाले इन लोगों में कुछ संक्रमित पाये जाते हैं तो फिर स्थिति कितनी गंभीर हो सकती है…इसका अंदाज़ा जा सकता है…यह संक्रमण तेजी से इन प्रदेशों में रहने वाले अन्य लोगों को भी अपनी चपेट में ले सकता है। यह अपने घर जाने वाले मज़दूर रास्ते में किसी तरह से संक्रमित हो सकते हैं…जहां जायेंगें वहां लोगों को संक्रमित करेंगें…
इन मज़दूरों के चेहरों की तरफ देखेंगे तो पता चलेगा कि ये लोग कितने मजबूर है…ये गरीब लोग इन महानगरों में बड़ी बड़ी इमराते तो बनाते हैं लेकिन खुद का सर छिपाने की जगह नहीं है…सरकार अपनी तरफ से व्यवस्था तो कर रही है लेकिन ये नाकाफी साबित हो रही है…
कहीं अपने घर प्रदेश में कोरोना संक्रमण तो नहीं ले जा रहे ये मज़दूर
प्रधानमंत्री मोदी ने अपील की है जो जहां है वहीं रहे…लेकिन हो रहा है इससे बिल्कुल उलटा…लॉकड़ाउन मतलब कम्पलीट लॉकड़ाउन..सरकार को इन मजबूर बेसहारा,लाचार और मजबूर लोगों के रहने के लिए यहीं कोई अस्थाई व्यवस्था कर देनी चाहिए थी…इन लोगों को घर पहुचांने की कवायद को जिस तरीके से अंजाम दिया जा रहा है यह खतरे से खाली नहीं है… इन सैंकडों हज़ारों लोगों को सुनियोजित तरीके से सुरक्षित रुप से घर पहुंचाने के लिए कुछ इंतज़ामात किए जाने की ज़रुरत थी…कुछ स्कूलों कॉलेजों,धर्मशालाओं,कम्यूनिटी सैंटरों सरकारी इमारतों में इनके ठहरने खाने का इंतजाम कर दिया जाता और धीरे धीरे सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखते हुए इन लोगों को कुछ अलग अलग जत्थों में बांटकर घर पहुचाया जाना चाहिए था…
कहां है नेता जी
सवाल यहा पर उन नेताओं से भी है जो इनकी वोटों से निगम पार्षद बनते हैं…विधायक बनते हैं…सांसद और मंत्री बनते हैं…हमारा सवाल उन नेताओं से भी है जो इन लोगों की वोटों के लिए इन्हें कहीं से भी ढूंढ लेते हैं…चुनाव के दौरान इनके घर में पहुंच कर बडी बड़ी कसमें खाते हैं और इन भोले भाले लोगों से बड़े बड़े वायदे करते हैं…इन्हें बडे बड़े ख्वाब दिखाते है…कहां गये ये गरीबों के सपनों के सौदागर..इनकी मलिन बस्तियों में जाते हैं…इनके कीचड में लथपथ बच्चों को अपनी गौद में भी उठाते हैं…ये नेता ढूंढने से भी नहीं दिखाई देते…ये थोडी सी कौशिश करते तो शायद इन मजबूर लोगों के मन के भय के दूर कर सकते थे…इन लोगों को समझा सकते थे। नेता कठिन घड़ी में लोगों की रहनुमाई करने के लिए होते हैं उन्हें अंधेरे में रास्ता दिखाने वाले होते हैं