सावधान ! माइक्रोवेव में कभी न करें प्लास्टिक बर्तन का इस्तेमाल

न्यू दिल्ली,न्यूज़ नॉलेज मास्टर(NKM) ,आज के भागदौड़ और आधुनिकता से भरी इस जिंदगी में माइक्रोवेव तकनीक जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुकी है। अक्सर गृहिणियां माइक्रोवेव ओवन में अपने परिवार के लिए कुछ न कुछ पकाती रहती हैं और नौकरीपेशा लोग भी ऑफिस से देर रात लौटने पर इसमें भोजन गर्म करके खाते हैं। क्या आप जानते हैं कि भोजन को प्लास्टिक के डिब्बे में रखकर माइक्रोवेव ओवन में पकाने पर बांझपन, मधुमेह, मोटापे की समस्या और कैंसर (कर्क रोग) होने का बड़ा खतरा है। वहीं गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थय पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

– प्लास्टिक से निकले रसायनों से दूषित हो जाता है भोजन
– प्रजनन क्षमता प्रभावित करते हैं रसायन
– हो सकती हैं बांझपन, कैंसर, मोटापे जैसी बीमारियां
– गर्भवती महिलाओं व गर्भस्थ शिशुओं को भी हो सकती हैं समस्याएं

इंदिरा हॉस्पिटल कि गॉइनोकोलोजिस्ट डॉ.सागरिका अग्रवाल का कहना है कि दरअसल, विभिन्न अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्लास्टिक डिब्बे में भोजन को रखकर माइक्रोवेव ओवन में पकाने या गर्म करने पर उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा हो सकती है। इससे प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचता है और दूसरे तरह के कई भयावह दुष्प्रभाव सामने आते हैं। दरअसल, माइक्रोवेव ओवन में प्लास्टिक बर्तन के गर्म होने पर उसमें मौजूद रसायनों का 95 प्रतिशत तक रिसाव होता है।

आइए जानते हैं, क्या होता है जब माइक्रोवेव में प्लास्टिक गर्म होता है?

प्लास्टिक के बर्तनों को बनाने के लिए औद्योगिक रसायन बिस्फेनोल ए का इस्तेमाल किया जाता है। इस रसायन को सामान्य तौर पर बीपीए के नाम से जाना जाता है। इस रसायन का सीधा संबंध बांझपन, हार्मोनों में बदलाव, कैंसर की बढ़ोतरी से है। यह लैगिंक लक्षणों में बदलाव लाता है, यानी यह पुरुषोचित गुणों को भी कम करता है। यह मस्तिष्क की संरचना को नुकसान पहुंचाने, उग्रता, सक्रियता और मोटापा बढ़ाने का भी काम करता है।

प्लास्टिक में पीवीसी, डाइऑक्सिन और स्टाइरीन जैसे कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं, जिनका सीधा संबंध कैंसर से है। चौंकाने वाला सच यह है कि जब प्लास्टिक के बर्तन में भोज्य पदार्थों को रखकर माइक्रोवेव ओवन में पकाया जाता है तो प्लास्टिक के पात्र में मौजूद रसायन, ओवन की गर्मी से पिघल कर खाद्य पदार्थ पर अपना असर छोड़ते हैं। भोजन गर्म होने पर प्लास्टिक के गर्म बर्तन से निकलने वाले रसायनों के संपर्क में आता है और दूषित हो जाता है। रसायनों से दूषित इस भोजन को खाने से कैंसर, बांझपन होने के अलावा मस्तिष्क और प्रजनन तंत्र की सामान्य कार्यप्रणाली प्रभावित होने का खतरा रहता है।
यदि हम वसायुक्त खाद्य पदार्थों को पकाते हैं तो प्लास्टिक और भोजन के संयोजन से खतरनाक और जहरीले विषाक्त पदार्थ निकलते हैं। ये विषाक्त पदार्थ उच्च रक्तचाप के लिए उत्तरदायी उन कारणों में से एक हैं, जो हृदयरोग, हृदयघात और मृत्यु की भी वजह बनते हैं।

कौनसा प्लास्टिक माइक्रोवेव में सुरक्षित है?

माइक्रोवेव में किसी भी तरह का प्लास्टिक सुरक्षित नहीं है। हालांकि, इतना जरूर है कि सामान्य तौर पर इस्तेमाल में लिए जाने वाले प्लास्टिक की तुलना में प्लास्टिक के दूसरे विकल्प कम खतरनाक हैं, जिनमें अपेक्षाकृत रूप से कम हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह की प्लास्टिक में डिसोनोनील फेथलेट (डीआईएनपी) और डायसोसिल फेथलेट (डीआईडीपी) जैसे विषाक्त पदार्थों का इस्तेमाल होता है, जो दूसरे विषैले फेथलेट की तुलना में शरीर के प्रजनन तंत्र को कम नुकसान पहुंचाते हैं। इतना ही नहीं, डीआईएनपी और डीआईडीपी का संबंध भी उच्च रक्तचाप से है। इसलिए भोजन को पकाने के लिए गैस का चूल्हा या तंदूर का इस्तेमाल करना अधिक सुरक्षित है।

क्या माइक्रोवेव का इस्तेमाल सुरक्षित है?
जब कभी भी आप माइक्रोवेव का इस्तेमाल करें, हमेशा दूरी बनाए रखें, क्योंकि विभिन्न शोधों में पाया गया है कि माइक्रोवेव के इस्तेमाल के समय हानिकारक विकिरण निकलते हैं। हालांकि, अधिकांश मामलों में यह जरूर पाया गया है कि माइक्रोवेव में भोजन पकाना या गर्म करना नुकसानदेय नहीं है। माइक्रोवेव में गलत बर्तन का उपयोग आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए अपनी आदतों में प्लास्टिक का इस्तेमाल करना छोड़ दें।

कांच के बर्तन अधिक सुरक्षित

भोजन को पैक करने के लिए कांच के बर्तन अधिक सुरक्षित हैं। वे प्लास्टिक की तरह रसायनों को नहीं छोड़ते और भोजन को गर्म करने के लिहाज से भी सुरक्षित हैं। आप अपने भोजन को बिना गर्म किए भी खा सकते हैं, हालांकि यह निर्भर करता है कि खाद्य पदार्थ क्या है।

प्लास्टिक और बांझपन
हमारी जीवनशैली में प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल वैश्विक स्तर पर बांझपन की समस्याएं बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। सभी तरह के प्लास्टिक में विषैले रसायन होते हैं जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली और हार्मोन विनियमन पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं। पूर्व में की गई शोधों में साबित हो चुका है कि इन रसायनों का प्रभाव पुरुष और महिला दोनों की प्रजनन क्षमता पर पड़ता है और यह गर्भस्थ शिशु और बढ़ते हुए बच्चों को प्रभावित करता है।

बीपीए भी गर्भावस्था में बाधक बनता है। यह बच्चों में जन्मजात और विकास से जुड़ी कई तरह की समस्याएं पैदा करता है। यह भी पाया गया है कि इसके कारण कई तरह के कैंसर, बच्चों व युवाओं में एकाग्रता में कमी और मधुमेह जैसे विकार पैदा करता है।
बीपीए के संपर्क में आने बांझपन या नपुंसकता हो सकती है। इस रसायन के दुष्प्रभावों का सीधा संबंध उच्च स्तर के इन वाइट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) विफलता से है। प्लास्टिक में मौजूद बीपीए और दूसरे रसायनों के कुप्रभाव प्राकृतिक प्रजनन प्रक्रिया से लेकर आईवीएफ जैसी आधुनिकतम तकनीक पर भी पड़ते हैं।

इस तरह कम करें खतरा

– अपने भोजन, मांस, सब्जियों आदि से प्लास्टिक आवरण हटाकर उन्हें जल्द से जल्द सुरक्षित आवरण से ढंक दें।
– कभी भी बचा हुआ खाना प्लास्टिक की थैलियों या बर्तनों में न रखें।
– कभी भी प्लास्टिक के बर्तन में खाना रखकर उसे माइक्रोवेव में फिर से गर्म न करें।
– पीने का पानी भरने के लिए हमेशा नॉन-बीपीए बोतल का इस्तेमाल करें।

चूंकि, प्लास्टिक का उपयोग सभी जगह हो रहा है, ऐसे में प्लास्टिक के इस्तेमाल से खुद को दूर रखना काफी मुश्किल है। लेकिन प्लास्टिक का कम से कम उपयोग कर आप अपने भोजन और पेय पदार्थों को इसके विषैले पदार्थों से अधिक से अधिक दूर रख सकती हैं और शरीर में बीपीए का स्तर कम रख सकती हैं।

गर्भवती महिलाएं रहें सचेत

डॉ.सागरिका अग्रवाल का कहना है कि गर्भवती महिलाओं को भी सजग रहने की ज़रुरत है कि वे प्लास्टिक बर्तनों में गर्म किए गए खाद्य व पेय पदार्थों से परहेज करें, क्योंकि इनमें मौजूद रसायनों के कारण गर्भपात की आशंका 80 फीसदी तक बढ़ जाती है। गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वे प्लास्टिक के बर्तनों में भोजन न तो पकाएं न ही गर्म करें,क्योंकि अत्यधिक तापमान में इन बर्तनों से निकलने वाले रसायनों से उन्हें खतरा है। यहां तक कि वे धूप में गर्म हुई प्लास्टिक की बोतल में रखा पेय पदार्थ भी न लें।
हमारा आधुनिक समाज आज बहुत सी सुख-सुविधाएं पसंद करता है, लेकिन दुर्भाग्यवश ये हमारे लिए सुरक्षित नहीं हैं। यह बात समझने योग्य है कि हम अपने कार्य के प्रवाह और तय कार्यक्रम में किसी तरह की बाधा नहीं चाहते, लेकिन हमें इतना समय तो निकालना ही होगा कि हमारी या किसी अन्य का शरीर इन तत्वों से विषाक्त न हो।

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