हिन्दी को महज कार्यालयों से निकाल कर जन विमर्श की भाषा बनायें : उपराष्ट्रपति

न्यूज़ नॉलेज मास्टर(NKM NEWS)हिंदी दिवस के अवसर पर सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए,उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि

“किसी भाषा का उत्सव एक दिवस के रूप में मनाना अपने आप में भाषा के विस्तार, सामाजिक जीवन के विभिन्न आयामों में उसकी व्यापकता को सीमित करता है। भाषा राजकीय उत्सवों से नहीं बल्कि जनसरोकारों और लोक पंरपराओं से समृद्ध होती है।” उन्होंने कहा कि यह स्वीकार करना होगा कि आज तक हम हिंदी को उसके उचित स्थान तक नहीं पहुंचा पाये हैं। आज भी हमारा राजकीय कार्य प्राय: अंग्रेजी में ही होता है।

14 सितंबर 1949 को ही संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था।उपराष्ट्रपति ने पूछा कि “क्या हम संविधान सभा की आशाओं पर खरे उतरे हैं? आज हिंदी दिवस के अवसर पर इन प्रश्नों के प्रति हम उत्तरदायी हैं।” उन्होंने कहा कि संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा स्वीकार करते हुए भी अन्य भारतीय भाषाओं की मर्यादा और महत्ता को संविधान की आठवीं अनुसूची में अंगीकार किया। भारत की भाषाई विविधता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा “सभी भाषाएं हमारी हैं, हमारे पूर्वजों के ज्ञान की धरोहर हैं। यह प्रश्न भाषाई प्रतिस्पर्धा या वैमनस्य का है ही नहीं।”

उपराष्ट्रपति ने राजभाषा विभाग से संविधान की धारा 351 के अंतर्गत अपेक्षाओं के प्रति सजग रहने को कहा, जिसमें हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में सौहार्द और सामंजस्य की अपेक्षा की गई है। उन्होंने कहा यह अपेक्षा की गई थी कि “संघ हिंदी के प्रसार के लिए प्रयत्न करेगा और हिंदी को इस प्रकार विकसित करेगा कि वह देश की मिलीजुली संस्कृति को अभिव्यक्त कर सके। संघ से यह भी अपेक्षा थी कि हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए संस्कृत, हिन्दुस्तानी और अन्य भारतीय भाषाओं के मध्य सतत संवाद को प्रोत्साहन देगा। जहां तक संभव हो भारतीय भाषाओं के शब्द, मुहावरे, लोकोक्तियों से हिन्दी को समृद्ध किया जायेगा।” इस संबंध में उपराष्ट्रपति ने राजभाषा हिंदी भाषी कर्मचारियों के लिये अन्य भारतीय भाषाओं के छोटे ऑनलाइन कोर्स विकसित करने की सलाह दी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *