सेना से रिटायर्ड शॉर्ट सर्विसड कमीशन्ड अधिकारियों की अनदेखी क्यों ?सेना में भेदभाव की नीति को लेकर मोहाली में मंथन

सेना मे सैनिको के बीच भेदभाव की नीति क्यों ? शॉर्ट सर्विसड और परमानेंट कमीशंड में भेदभाव क्यों ? ऐसी ही मुद्दों पर मंथन के लिए 12 फरवरी को मोहाली में (EX – SERVICEMEN SAMMELAN)भूतपूर्व सैनिक सम्मेलन आयोजित किया गया ताकि( शॉर्ट सर्विसड कमीशन्ड ऑफिसर्स) एसएससीओ की मांग को मजबूती से सियासी दलों के सामने उठाया जा सके और चुनावी प्रक्रिया में पूर्व सैनिकों के प्रतिनिधित्व का दावा भी किया जा सके । मौजूदा समय मे पंजाब के साथ 4 अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनावी प्रक्रिया जारी है। पंजाब में 20 फरवरी को मतदान होगा। लिहाज़ा पंजाब के मोहाली में पूर्व सैनिकों का सम्मेलन सियासी दलों को यह संदेश देता है कि सरहद पर रहकर देश की सेवा करने वाले सैनिकों को सेवानिवृत्त होने के बाद नजरअंदाज न किया जाए। सेवानिवृत्त सर्विसड कमीशन्ड अधिकारियों ने विभिन्न तरीकों से सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की है।

हालांकि शॉर्ट सर्विसड कमीशन्ड ऑफिसर्स की लंबित मांगों के सिलसिले में सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल जीपीएस विर्क ने चंडीगढ़ में हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है, जिसमें ओआरओपी तालिका के अनुसार सशस्त्र बलों में प्रदान की गई सेवाओं के लिए एसएससीओ को यथानुपात पेंशन के कानूनी निवारण के लिए कोर्ट से गुहार लगाई है।

शॉर्ट सर्विस कमीशन सेना निर्देश 62 और सेना निर्देश 64 द्वारा शासित है। नीति और यह संसद स्तर पर तय की जाती है। इसलिए केंद्र सरकार को तैयार करना चाहिए। संसद में कानून के माध्यम से नीति लागू की जानी चाहिए

कैप्टन हरीश पूरी की माने तो शॉर्ट सर्विसड कमीशंड अधिकारियों की यह मुहिम एक अर्से से चल रही है। इतिहास में देश के नीति नियंताओं ने जो गलतियां की थी उसका खामियाजा आज पूर्व सैनिक भुगत रहे हैं। लेकिन किसी भी सरकार ने इतिहास की भूल को सुधारने की कोशिश नही की है। सरकारों का यह रवैया देश की सुरक्षा और सैनिकों के मनोबल के लिए ठीक नहीं है

शॉर्ट सर्विसड कमीशन्ड ऑफिसर्स की मुहिम इन मुद्दों के इर्द गिर्द घूमती दिखाई दे रही है।

1) पहले एसएससीओ को कवर करने वाले नियम थे कि वे अनिवार्य रूप से 5 साल के लिए काम करेंगे और कुछ को बाद में अवशोषित कर लिया जाएगा, कुछ 5 साल के लिए विस्तार योग्य कार्यकाल पर होंगे और अन्य 5 साल के बाद ग्रेच्युटी दिए जाने पर सेवा से हटा दिए जाएंगे।
2) उस समय प्रचलित शर्त यह थी कि पेंशन के लिए पात्र होने के लिए 20 साल सेवा की आवश्यकता थी, लेकिन चूंकि एसएससीओ के विस्तार पर केवल 10 साल की अधिकतम अवधि ही सेवा दे सकती थी, वे इस तरह के पेंशन विनियमन के दायरे से बाहर थे और पेंशन के लिए पात्र नहीं थे। .
3) 2016 में नियमित अधिकारियों के लिए ओआरओपी की घोषणा की गई थी और यही वह समय था जब इन इन्होंने सरकार के समक्ष यह मामला उठाया था कि सशस्त्र बलों में सेवा करने वाले एसएससीओ को उनकी सेवा की कार्य अवधिके आधार पर आनुपातिक पेंशन के लिए विचार किया जाना चाहिए। OROP तालिका जो 6 महीने से 33 वर्ष तक प्रभावी है।
4) सशस्त्र बलों से 8000 एसएससीओ जारी किए गए हैं जो लाभान्वित होंगे और वर्तमान में सेवारत एसएससीओ को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
5) पिछले 6 वर्षों से समय से पहले सेवानिवृत्त एसएस अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल जीपीएस, अध्यक्ष AISSCOWA (ऑल इंडिया शॉर्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर्स वेलफेयर एसोसिएशन) के साथ, सीओएएस, आरएम, एफएम, सीजेआई, फिर सीडीएस से इस मांग को उठाने के लिए बैठक कर रहे हैं।

6) 1965 से यूपीएससी के विज्ञापन में यह ज़िक्र किया गया था कि एसएससीओ के लिए पेंशन विचाराधीन है, लेकिन 2016 के बाद से जब ओआरओपी घोषित किया गया था, तब तक इस मांग को सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है। और स्थिति अधर में लटकी हुई है।
शॉर्ट सर्विसड कमीशंड अधिकारियों ने अनुरोध किया कि पूर्व सैनिकों को समानुपातिक पेंशन और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करके उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने के उचित प्रोत्साहन दिया जना चाहिए। यह मौजूदा सेना में सेवारत SSCO को प्रोत्साहित करेगा जिससे उनका मनोबल बढ़ेगा। सरकार द्वारा इस मांग को पूरा करने में आपकी ईमानदार पहल सशस्त्र बलों को मजबूत करेगी और यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि सिस्टम में यह भेदभाव पिछले 55 वर्षों से जारी है।

13 फरवरी 2020 को भारत सरकार की एक राजपत्र अधिसूचना के तहत एसएससीओ जिन्हें ग्रेच्युटी के भुगतान पर सेवा से मुक्त कर दिया गया था, उन्हें भूतपूर्व सैनिक माना जाता था, लेकिन आज तक न तो पेंशन और न ही ईसीएचएस (भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना) चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई है। .

सम्मेलन में मोहाली से बीजेपी के प्रत्याशी संजीव वशिष्ट ने कहा प्रधानमंत्री मोदी का सदैव ही सैनिकों से विशेष लगाव रहा है यही वजह है कि प्रधानमंत्री अपनी हर दीपावली सैनिकों के साथ मनाते हैं । गुजरात में भी सैनिकों के लिए सरकार के सभी विभागों में प्राथमिकता के आधार पर तरज़ीह दिये जाने हेतु निर्देश जारी किया गया है। यही नही इस तरह का आदेश जारी करने वाला गुजरात देश का पहला राज्य है। वशिष्ठ ने कहा यदि क्षेत्र के लोगो ने उन्न्हें चुनकर विधानसभा में भेजा तो वह सेवानिवृत्त सैनिकों का मुद्दा विधानसभा में जरूर उठाएंगे

पूर्व सैनिक अपने मुद्दों को बड़ी शिद्दत से उठा रहे हैं । SSCO की इन मांगों पर सियासी दल और सरकार कब तक ध्यान देते हैं यह देखने वाली बात होगी।

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