राजौरी में अवैध निर्माण पर कार्रवाई में देरी पर MCD को दिल्ली हाई कोर्ट की फटकार

संदीप शर्मा

MCD अधिकारियों और कब्जेदार के बीच मिलीभगत के आरोपों पर कोर्ट ने की खिंचाई

नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम (MCD) को दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के राजौरी इलाके में अवैध निर्माण पर कार्रवाई करने में देरी के कारण दिल्ली हाई कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है। बल्कि कोर्ट ने निगम द्वारा न करवाई किये जाने पर
कहा कि कब्ज़ेदारो व निगम अधिकारियों की मिलीभगत के आरोपों को बल मिलता है । कोर्ट ने आज दिल्ली नगर निगम की इस मुद्दे पर जमकर लताड़ लगाई

कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण के खिलाफ पहले से ही ध्वस्तीकरण आदेश जारी होने के बावजूद, MCD की निष्क्रियता चिंताजनक है।

न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता में इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, “यह अदालत इस स्थिति को बर्दाश्त नहीं कर सकती कि जहां अवैध निर्माण बेधड़क जारी रहे और नगर निगम कोई प्रभावी कदम उठाने में विफल हो, जिससे वह एक बेबस व मूक दर्शक बनकर रह जाए।”

मामले की जटिलता तब और बढ़ गई जब जमीन के कब्जेदार ने MCD के ध्वस्तीकरण आदेश को चुनौती देते हुए MCD के अपीलीय न्यायाधिकरण (ATMCD) में अपील दायर की। ATMCD ने 18 जनवरी को निर्देश दिया कि MCD कब्जेदार के साथ सुनवाई करके एक महीने के भीतर नया आदेश जारी करे। हालांकि, MCD ने इस निर्देश का पालन समय पर नहीं किया और 26 मार्च को एक नया ध्वस्तीकरण आदेश जारी किया।

कब्जेदार ने इस नए आदेश के खिलाफ फिर से अपील की, जो अभी तक लंबित है। अदालत ने इस बात पर गहरी नाराजगी जताई कि MCD ने ध्वस्तीकरण आदेश के बावजूद अवैध निर्माण को रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया।

MCD की ओर से दाखिल एक हलफनामे में बताया गया कि कब्जेदार ने MCD को संपत्ति की पूरी तरह से जांच करने की अनुमति नहीं दी, जिससे उन्हें निर्माण का निरीक्षण केवल बाहर से ही करना पड़ा। अदालत ने इस असफलता को गंभीरता से लिया और कहा कि MCD की यह निष्क्रियता MCD अधिकारियों और कब्जेदार के बीच मिलीभगत के आरोपों को बल दे सकती है।

अदालत ने MCD को आदेश दिया कि वह अवैध निर्माण की पूरी तरह से जांच करे और तुरंत किसी भी चल रहे अवैध निर्माण को रोके। साथ ही, अदालत ने ATMCD से अपीलों पर शीघ्र निर्णय लेने का आग्रह किया।

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