दिल्ली में एमटीएस (डीबीसी) कर्मचारियों की दुर्दशा: 28 वर्षों से विभागीय उपेक्षा के शिकार कर्मचारियों की अनसुनी कहानी

संदीप शर्मा

दिल्ली की सड़कों पर लगातार हो रही बारिश ने बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ा दिया है। इस समय, जब राजधानी की जनता डेंगू और मलेरिया जैसी घातक बीमारियों के चपेट में आने से डर रही थी, एमटीएस (डीबीसी) कर्मचारी अग्रिम मोर्चे पर खड़े होकर अपनी जान की परवाह किए बिना डोर-टू-डोर सेवा में जुटे रहे। इन कर्मचारियों ने सीमित संसाधनों और कम सैलरी में भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाया, ताकि दिल्ली की जनता सुरक्षित रह सके।


हालांकि, यह दुखद है कि ऐसे समर्पित कर्मचारियों के प्रति नगर निगम की अनदेखी अब असहनीय हो चुकी है। 28 वर्षों से ये कर्मचारी गंभीर उपेक्षा का शिकार हैं। प्रमोशन का तो सवाल ही नहीं उठता; उन्हें आज तक कोई उन्नति का अवसर नहीं दिया गया है। जो तनख्वाह उन्हें दी जाती है, वह इतने वर्षों बाद भी न्यूनतम स्तर पर ही है। इसी कारण से कर्मचारियों का जीवन यापन करना कठिन और दुश्वार हो गया है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि यदि किसी कर्मचारी का नौकरी पर रहते हुए निधन हो जाता है, तो उसके परिवार को कोई आर्थिक सुरक्षा या नौकरी नहीं दी जाती। यही नहीं, उनकी तनख्वाह से काटे गए फंड्स भी अब तक गायब हैं, जिसका कोई लेखा-जोखा नहीं मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में, निगम प्रशासन से शिकायतें भी व्यर्थ ही साबित हो रही हैं। कर्मचारियों को हर बार केवल आश्वासन देकर छोड़ दिया जाता है, लेकिन समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है। एमटीएस (डीबीसी) कर्मचारियों की ये समस्याएं उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से प्रभावित कर रही हैं।
एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन (रजि०) के महासचिव देव आनंद शर्मा ने इस मुद्दे पर मीडिया का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है। उनका कहना है कि इन कर्मचारियों की आवाज़ को नजरअंदाज करना अब और संभव नहीं है। यह समय है कि निगम प्रशासन इनकी मांगों को गंभीरता से ले और तत्काल समाधान प्रदान करे। इसे लेकर एंटी मलेरिया कर्मचारी संघ ने एक पत्र दिल्ली निगम आयुक्त और महापौर के नाम लिखा है


दिल्ली के एमटीएस (डीबीसी) कर्मचारियों की इस दुर्दशा को नजरअंदाज करना केवल उनकी ही नहीं, बल्कि दिल्ली की जनता के स्वास्थ्य की भी अनदेखी करना है। इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द निकाला जाना चाहिए।

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