खाड़ी देशों में अमानवीय परिस्थितियों में जीने को मजबूर प्रवासी मजदूरों के लिए ज़रूरी कदम उठाए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अंतरराष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय श्रम संग़ठन -डॉ दीपेंद्र चाहर
न्यूज़ नॉलेज मास्टर,NKM NEWS,भारतीय मजदूर संघ के दिल्ली प्रदेश के महामंत्री डॉ दीपेंद्र चाहर ने खाड़ी देश कतर में भारतीय कामगारों सहित पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका व बांग्लादेश के कामगारों के साथ हो रहे आमानवीय व्यवहार पर चिंता जताते हुए इसे मुद्दे को दुनियांभर के सामने रखा। कतर देश में मानवाधिकार कानूनों का हनन हो रहा जिसके तहत वहां किसी मजदूर की मौत हो जाने के बाद भी उसका शव भारत लाने में कई तरह की परेशानियां का सामना करना पड़ता है। कतर देश में काम करने गए भारतीय मूल के लोगो के साथ बेहद ही खराब व्यवहार किया जा रहा है। भारत देश के श्रम संगठन भारतीय मजदूर संघ ने कतर में भारतीय कामगारों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार का मुद्दा 27 मई से 12 जून तक जिनेवा में हुए अंतरराष्ट्रीय लेबर कान्फ्रेंस में भी उठाया है ।
2014 से अब तक 1611 भारतीय कामगारों की मौत कतर में हो चुकी है। इसके साथ ही कतर में भारतीय कामगारों का पासपोर्ट जब्त कर लेना, उनसे जबरन काम लेना, काम करने के दौरान बेहद कम समय के लिए ब्रेक देना, योन उत्पीड़न जैसी घटनाएं आम हो चली हैं. भारतीय कामगारों के साथ हो रहे इन दुर्व्यहार के बारे में भारत में कतर देश के राजदूत को अवगत कराया गया है।
खाड़ी के प्रमुख देशों में शुमार कतर में काम करने के लिए बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार आते हैं. जिन्हें नियंत्रण करने के लिए वहां काफला सिस्टम लागू था. जिसके तहत कतर में कामगारों को नौकरी बदलने से पहले अपने मालिकों (काम देने वालों) की सहमति लेना आवश्यक था. इसके साथ ही काफला सिस्टम प्रवासी कामगारों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाता था. इस वजह से कतर में प्रवासी कामगारों का जीवन बेहद ही मुश्किल भरा हुआ माना जाता था. ऐसे में वैश्विक स्तर पर कतर में प्रवासी कामगारों के मानव अधिकार के हनन का मुद्दा बीते वर्षों में चर्चा में भी रहा था. भारत सरकार ने भी इस कानून पर कड़ी आपित्ती दर्ज कराई जिसके चलते कतर सरकार ने 2020 में काफला सिस्टम को खत्म कर दिया था, लेकिन इसके बाद भी कतर से प्रवासी कामगारों के शोषणों की सूचनाएं लगातार आ रही हैं।
अपने बेहतर भविष्य को लेकर हजारों भारतीय कामगार कतर में जी तोड़ मेहनत कर रहे है। सैकड़ों भारतीयों को न तो वेतन मिल रहा है और न ही दो वक्त का खाना। उनकी ये हालात पिछले छह माह से चल रही हैं। कंपनी से सिर्फ उन्हें आश्वासन मिलता है और विरोध करने पर उन्हें निकाल दिया जाता है। कुछ मजदूरों ने मिलकर इसकी शिकायत भारतीय दूतावास में की है। दूतावास ने इस मुद्दे को सरकार के सामने उठाया है। जिसके बाद से मजदूरों की कुछ आशा बंधी है। कतर में सबसे अधिक भारतीय मजदूर काम कर रहे।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,कतर की एचकेएच जनरल कॉन्ट्रैक्टिंग कंपनी ने सबसे ज्यादा भारतीय मजदूरों को काम के लिए भर्ती किया है। कंपनी ने करीब 1200 मजदूर रखे हैं। कतर स्थित भारतीय दूतावास से करीब 25 मजदूरों ने अपने हालात के बारे में शिकायत की थी। इसके बाद दूतावास ने मामले को संबंधित कंपनी के सामने उठाया लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। दूतावास ने कतर प्रशासन और श्रम एवं समाज कल्याण मंत्री के सामने भी इस मुद्दे को रखा है। इस पर कतर मंत्रालय ने हर संभव मदद का भरोसा दिया। कतर प्रशासन ने मजदूरों के बकाया चुकाने के लिए फंड देने का भी वादा किया है।
देश के विभिन्न इलाकों से हर साल भारतीय कमाई की आस में कतर देश का रुख कर रहे हैं। कुछ को रोजगार हासिल हो जाता है तो कई ठगी का शिकार होकर लौट आते हैं। कुछ लोग तनाव और दबाव में काम भी करते रहते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में काम कर रहे कई कामगार दम तोड़ देते हैं। इनमें से कइयों को तो महीनों बाद अपने वतन की माटी नसीब हो सकी।
2014 से 2019 तक 1611 भारतीय कामगारों की जान चली गई। कतर में स्थित भारतीय मिशन और अन्य केंद्रों में कामगारों ने विभिन्न एजेंसियों के विरुद्ध छह साल में करीब 30 हजार शिकायतें दर्ज करवाई हैं।
नवम्बर 2022 में कतर में फीफा वर्ल्ड कप होना है। वहां पिछले कई सालों से दर्जनों परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कतर पर मजदूरों से जबरदस्ती काम कराने का आरोप लगाया था। एक कमरे में कई मजदूरों को ठूंसने, टॉयलेट और अन्य सुविधाएं बेहद खराब होने, भारी भरकम रिक्रूटमेंट फीस लेने और मजदूरी रोकने जैसी कई शिकायतें अक्सर आती रहती हैं।
कतर में फीफा-2022 की जब से घोषणा हुई तब से भारत, पाकिस्तान, नेपाल , बांग्लादेश और श्रीलंका के 6500 प्रवासी कामगारों की मौत हो चुकी है। श्रम अधिकार समूह फेयरस्क्वेयर का कहना है कि मरने वालों में अधिकतर वर्ल्ड कप इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में काम कर रहे थे। रिपोर्ट में दावा किया गया कि दिसंबर 2010 में जब कतर को 22वें फीफा वर्ल्डकप के लिए चुना गया था तब से लेकर अब तक हर सप्ताह इन देशों के लगभग 12 लोगों की मौत हुई है। कतर में पिछले 10 साल में लगभग 28 लाख प्रवासी मजदूरों ने फुटबॉल के 7 नए स्टेडियम का निर्माण किया है। मेट्रो, एयरपोर्ट, मोटर वे व नया शहर बसाया गया है।
विकास भी जरूरी है, फीफा भी जरूरी है, रोजगार भी जरूरी है लेकिन मौत की कीमत पर नहीं, अंतराष्ट्रीय मानवधिकार आयोग, अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO),कतर देश सहित सभी खाड़ी देश प्रवासी मजदूरों की रक्षा हेतु जो जरूरी कदम है तत्काल उठाये ताकि कतर फीफा 2022 के लिये जाना जाये न कि कामगारों की बलि लेने वाले देश के रूप में।