जानिए किसी भी शुभ कार्य के लिए बसन्त पंचमी का दिन ही शुभ क्यों ?
भारत देश को त्योहारों और ऋतुओं का देश कहा जाता है, जो हमें आपस में और प्रकृति के साथ जोड़े रखते हैं। आज के आधुनिक युग में जो विषय बड़ी बड़ी Universities औपचारिक रूप से अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा दिखाकर समझदारी का जामा पहनाती हैं, ये सब तो हमारे संस्कार और संस्कृति का हिस्सा रहे हैं।जिन्हें हमारे घरों और परिवार की “so-called अनपढ़” दादी- नानी ने अपने दिनचर्या और मासिक और वार्षिक कार्य कलापों में सदा हिस्सा बनाया है । आज उनके मुख से वे सब बातें यदि हम ध्यान से सुनें तो ऐसा लगता है मानो वह कई गुणा अधिक व्यावहारिक है ।बस उनका पंचांग (calendar) उनके ही तरीक़े से समझ में आता है ।और यदि वह भी ध्यान से सुनें और समझें तो बहुत सरल और तार्किक (logical) भी है।
भारत की छ: ऋतुओं- बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, हेमंत, शरद और शिशिर में से बसन्त ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। माघ महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को बसन्त पंचमी कहते हैं। इस दिन से बसन्त ऋतु का आरंभ माना जाता है। साथ ही कहा जाता है- “आया बसन्त – पाला उढ़न्त”, अर्थात इस ऋतु के आगमन के साथ ठिठुरने और कंपकपाने वाली सर्दी का अंत हो जाता है।यानि मीठी-मीठी धूप में अब सभी प्राणी एक नई ऊर्जा पा सकते हैं । मनुष्यों पशु पक्षियों और पेड़ पौधों में नई चेतना का संचार होता है।खेतों में फ़सलें लहलहाती हैं, वन-उपवन रंग-बिरंगे फलों और फूलों से सज जाते हैं।एक तरह से कह सकते हैं कि वसुंधरा अपना शृंगार करती है।
बसन्त पंचमी के दिन पीले रंग को शुभ मानते हुए लोग पीले वस्त्र पहनते हैं, अपने घरों, कार्यालयों और बाज़ारों को भी पीले रंगों और फूलों से सजाते हैं ।मंदिरों में देवी-देवताओं का शृंगार भी पीले वस्त्रों, आभूषणों और पुष्पों से किया जाता है। पीले पकवान जैसे मीठे चावल, हलवा आदि भी प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं और लोग एक दूसरे को शुभ कामनाएँ प्रेषित करते हैं।
बसन्त पंचमी के दिन को माँ सरस्वती का दिन भी माना जाता है।और उनकी विशेष रूप से पूजा भी की जाती है। माँ सरस्वती को वाणी, काला , बुद्धि, गुण और ज्ञान की देवी माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से विद्यालयों, शिक्षा संस्थानों, कला-केंद्रों और विद्यार्थियों द्वारा माँ सरस्वती का पूजन भी किया जाता है।
यही नहीं , किसी भी तरह के नए कार्यों का आरंभ करने के लिए भी बसन्त पंचमी के दिन को शुभ माना जाता है।नये घर में गृहप्रवेश, नये व्यपार का आरम्भ, किसी का नामकरण और परिणय-सूत्र अर्थात् विवाह के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है। तो आइए हम भी अपनी संस्कृति, इतिहास और संस्कारों को जानने में अपने आपको इस शुभ दिन से इस पथ पर अग्रसर हों और अपने भारत को एक बार पुनः उस विश्व गुरु के स्थान पर ले जाने के लिए प्रयत्नशील हों जहाँ से यह देश पूरे विश्व को “वसुधैव कुटुम्बकम्” का नारा देकर एक होने का संदेश देता रहा है।
तो आइए, सब मिलकर एक दूसरे को बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ दें और आने वाली पीढ़ियों को अपने देश, संस्कृति और संस्कारों को पहचानने और गर्व करने के लिए प्रेरित करें।
नोट-लेखिका,ममता नागपाल, पूर्व निगम पार्षदा व शिक्षा समिति की अध्यक्षा रह चुकी हैं