दिल्ली भाजपा के मुखिया बने वीरेंद्र सचदेवा शीर्ष नेतृत्व की परीक्षा में हुए पास,क्या खत्म होगा भाजपा का वनवास ?

भाजपा दिल्ली प्रदेश की कमान 13 साल बाद फिर से पंजाबी समुदाय से आने वाले किसी व्यक्ति को सौंपी गई है।   ओम प्रकाश कोहली के बाद पंजाबी समुदाय से आने वाले वीरेंद्र सचदेवा को प्रदेश दिल्ली भाजपा के मुखिया पद की जिम्मेदारी दी गई है । वीरेंद्र सचदेवा को आदेश गुप्ता के इस्तीफे के बाद 11 दिसम्बर 2022 को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में तो सचदेवा ने शीर्ष नेतृत्व की परीक्षा को भली भांति पास कर लिया है लेकिन भविष्य की बड़ी चुनौतियां उनका इंतजार कर रहीं हैं। क्या वह ढाई दशक से दिल्ली विधानसभा में चल आ रहा भाजपा का वनवास खत्म करवा पाएंगे । क्या 2025 में दिल्ली में भाजपा सरकार बना पाएगी ? क्या 2024 में फिर से दिल्ली के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सातों सीटें जितवा पाएंगे वीरेंद्र सचदेवा ?

शीर्ष नेतृत्व की परीक्षा में पास हुए सचदेवा

वीरेंद्र सचदेवा जहां बतौर कार्यकारी अध्यक्ष शीर्ष नेतृत्व का भरोसा जीतने में कामयाब रहे वहीं दिल्ली संगठन में अपने सहयोगियों का समर्थन जुटाने व कार्यकर्ताओं में जोश भरने  में भी सफल दिखाई दिए . कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद शीर्ष नेतृत्व उनकी कार्यशैली पर नज़र बनाये हए था । केंद्रीय नेतृत्व भी उनकी क्षमताओं व योग्यता को जांचना परखना चाहता था। सचदेवा ने बडी सूझबूझ व सहजता से पहले पड़ाव को पार कर दिखाया हैं। यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें विधिवत रूप से पूर्णकालिक अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी। अब सचदेवा के नेतृव में 2024 में दिल्ली का लोकसभा व 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा

केजरीवाल व कांग्रेस के खिलाफ जोरदार प्रदर्शनों का शानदार नेतृत्व

पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत करने वाले सचदेवा के पास संगठन में सामान्य कार्यकर्ता से दिल्ली भाजपा के शीर्ष पद तक का सफर तय किया है । उनके पास मंडल से लेकर जिले व प्रदेश स्तर तक विभिन्न पदों पर काम करने का अनुभव है । कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार व कांग्रेस  के खिलाफ विभिन्न मुद्दों पर किये जाने वाले प्रदर्शनों का न केवल उन्होंने शानदार नेतृत्व किया बल्कि वह कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाने भी भी कामयाब रहे । यहीं नही इस दौरान उन्होंने दिल्ली के सातों सांसदों व आठों विधायकों का विश्वास जीतने में भी सफल रहे। कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने दिल्ली के सभी सातों सांसदों से उनके घर मिलकर औपचारिकता निभाते हुए अपनी विनम्रता का परिचय दिया।

पोस्टरबाजी व होर्डिंग्स से बचने,सरलता सादगी व सेवा का सन्देश

वहीं वीरेंद्र सचदेवा ने अपने सरल स्वभाव व सादगी का परिचय देते हुए अपनी गाड़ी को पार्टी कार्यलय के बाहर छोड़कर पार्टी कार्यलय में पैदल ही दाखिल होते हैं। पार्टी कार्यलय में आने वाले कार्यकर्ताओं व अन्य मिलने वालों को किसी भी उपहार को न लाने का निर्देश दे रखा है। यही नही वीरेंद्र सचदेवा ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है वे उनके अध्यक्ष बनने पर बधाई के  होर्डिंग्स व पोस्टर लगाकर फ़िज़ूल खर्ची से बचे। वीरेंद्र सचदेवा पार्टी कार्यलय में यदि कोई मिठाई इत्यादि लाता है तो वह उसे तुरंत पार्टी कार्यलय के स्टाफ व आने वालों आगुन्तको में  बंटवा देते हैं। यह एक तरह से अच्छी शुरुआत है। यदि कोई नेता ज़मीन पर जनता व कार्यकर्ताओं से जुड़ कर रहता है तो संगठन का स्वास्थ्य भी ठीक  रहता है। पहले के नेताओं का जनता से सीधा जुड़ाव रहता था जो धीरे धीरे समाप्त हो गया  है। वैसे वीरेंद्र सचदेवा ऐसे वरिष्ठ नेताओं के सानिध्य में काम कर चुके हैं जो जनता के बीच रहते थे। वीरेंद्र सचदेवा भी उन्हीं नेताओं के पद चिन्हों पर चलकर पार्टी कार्यकर्ताओं में एक सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं । पूर्ववर्ती कुछ नेताओं के पांव ज़मीन पर नही टिकते दिखाई दिए। पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी का खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा। वीरेंद्र सचदेवा इस बात से भली भांति परिचित हैं लिहाज़ा वह अभी से सजग दिखाई दे रहे हैं। हालांकि आज प्रदेश कार्यलय 14 पंत मार्ग पर एक स्वागत कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।

जल्द शुरू होगी नई टीम के गठन की प्रक्रिया

आने वाले कुछ दिनों में अब नई टीम के गठन की प्रक्रिया भी शुरू होना स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है। ऐसे में नई टीम का क्या स्वरूप होगा व उस टीम के चयन का क्या पैमाना होगा देखने वाली बात होगी। सभी समुदायों को संगठन की टीम में यथोचित प्रतिनिधित्व देना,पार्टी की गुटबन्दी से उभारना, कार्यकर्ताओं में जोश को बनाये रखना, पार्टी में अनुशासन बनाए रखने की चुनौती सचदेवा के सामने है । इस कसौटी पर सचदेवा कितना खरे उतरते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।

पंजाबी समुदाय को भाजपा से पुनः भाजपा से जोड़ने की कवायद

एक वक़्त था जब दिल्ली की सियासत में पंजाबी समुदाय की तूती बोलती थी। वक्त के साथ दिल्ली की डेमोग्राफी में भारी बदलाव के साथ पंजाबी समुदाय भी दिल्ली की सियासत में  हाशिये पर पहुंच गया । भाजपा का कोर वोट बैंक माने जाने वाला पंजाबी समुदाय भी धीरे धीरे भाजपा से छिटका है और यही वजह है कि कई पंजाबी बहुल निगम व विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा है। अब फिर से पंजाबी समुदाय के एक व्यक्ति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने से भाजपा के कोर वोटर रहने वाले समुदाय का भाजपा को समर्थन मिलने की उम्मीद जताई जा सकती है ।

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