अमृतसर ट्रेन हादसे में मारे गये लोगों की इंसाफ के लिए भटक रही हैं आत्माएं !

न्यूज़ नॉलेज मास्टर(NKM NEWS),विजयदशमी के अवसर पर अमृतसर में रावण दहन के दौरान रेल हादसे में शिकार होने वालों के परिजनों के दिल पर देश की संवेदनहीन व्यवस्था ने ऐसे गहरे ज़ख्म दिएं हैं जो शायद कभी न भर पायेगें…गुरु की नगरी कहे जाने वाले इस शहर के बाशिंदे पत्थराई नज़र से देश के सियासतदानों की बेशर्मी और बेदर्द रवैये को देख रहे हैं…यहां के लोग देख रहे हैं कि किस तरह से जलती चिताओं पर सियासत की रोटियां सेंकी जा रही है..लेकिन हैरत की बात यह है कि इस हादसे में मारे जाने वाले 61 लोगों की मौत का भी किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है…ऐसे में इसमें मारे गये लोगों की आत्माएं चीख-चीख कर अपने कातिल को ढ़ूंढ रही हैं।

अमृतसर की इन गलियों में मातम पसरा है.मौत ने ऐसा तांड़व किया कि हर तरफ रोते-बिल्खते लोग दिखाई देते हैं…और सुनाई देते हैं गलियों में कभी न खत्म होने वाला विलाप…उन माओं की जिनकी कोख उज़ड़ चुकी है… विलाप उन बहनों का जिनकी क्लेजा यह सोच कर फटे जा रहा है कि वो चंद दिनों बाद भैया दूज पर किसे टीका करेंगी…किसकी कलाई पर राखी बांधेगी..वो बूढ़ा बाप जिसकी बुढ़ापे की लाठी इस सिस्टम नें छीन ली है…उन विधवा हुई औरतों का रुदन सुनकर किसी पत्थर दिल की रुह भी कांप जाये जिनकी करवा चौथ से चंद दिन पहले ही मांग का सिन्दूर मिटा दिया गया..इसे व्यवस्था का क्रूर मज़ाक हीं कहेंगें कि इन सामूहिक हत्याओं का कोई भी दोषी नहीं है.

इन हत्याओं के लिए नेता जिम्मेदार नही

इसे विडंबना नही कहेंगे तो क्या कहेंगें कि इस हादसे में मरने वालों की मौत का कोई जिम्मेदार नहीं है…इस पर पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है उसमें किसी को दोषी नहीं बनाया गया है….इसके मायने साफ है कि इन हत्याओं का कोई दोषी नहीं है.सूबे के मुख्यमंत्री राजा अमरिन्द्र सिंह ने न्यायायिक जांच के आदेश दे कर खानापूर्ती कर दी है। चार सप्ताह में रिपोर्ट जब आयेगी,तब आयेगी…इस न्यायायिक जांच का भी वही हाल होगा जो आज तक दूसरी रिपोर्टस का हुआ है…सत्ता का नशा कुर्सी पर बैठने वालों को अंधा कर देता है,इसका अंदाज़ा हुक्मरानों को देख कर ही लगाया जा सकता है।
जिस स्थानीय नेता मिट्ठु मदान ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया वो न जाने कहां गायब है..उसका कहीं कोई अता-पता नहीं है…इस छुट भय्ये नेता द्वारा आयोजित कार्यक्रम मे पंजाब सरकार के केबिनेट मिनि्स्टर नवजोत सिंह की धर्मपत्नि नवजोत कौर जो इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होती हैं उन्होंने भी इस हादसे की जिम्मेदारी लेने से इन्कार कर दिया है…उनका कहना है कि पटरी पर खडे़ बैठे लोगों से बार बार कार्यक्रम स्थल में आने की अपील के बावजूद लोग वहीं डटे रहे…उन्होंने इस अपील को तो सुन लिया लेकिन उनकी शान में कसीदें पड़ने वाले उस शख्स की वो पंक्तियां ध्यान नहीं रहीं जिसमें वो कह रहा है कि मैड़म जी देखिए चाहे पांच सौ गाडियां गुज़र जायें लेकिन लोग आपके लिए पटरी भी छोडने को तैयार नहीं है। नवजोत कौर ने यह नहीं बताया कि वह कार्यक्रम में तय वक्त से लेट क्यों पहुंची…वह शायद अपनी जगह ठीक भी हैं आखिर वो नेता ही क्या जो कार्यक्रम में ठीक समय पर पहुंच जाये। कार्यक्रम के आयोजकों ने एलईडी स्क्रीन का रुख रेलवे की पटरी की तरफ शायद इसलिए किया था तांकि रेल में बैठे यात्री इस कार्यक्रम का आनंद ले सकें।
इस देश में तो गरीब-अनपढ़ लोग बेचारे पैदा ही मरने के लिए होतें हैं…इनकी ज़रुरत तो नेताओं को चुनाव में वोट के लिए होती है और चुनाव के बाद समय समय पर होने वाले राजनैतिक कार्यक्रमों रेलियों में भीड़ बढ़ाने,शक्ति प्रदर्शन करने और नेतागिरी चमकाने के लिए ही होती है…इस

इस नरसंहार के लिए भारतीय रेल का भी कोई दोष नहीं

भारतीय रेल ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि इसमें कोई रेलवे की कोई गलती नहीं है…रेलवे प्रशासन को कार्यक्रम की कोई सूचना नहीं दी गई…लोगों का रेल पटरी पर इस तरह इक्कटठा होना अनाधिकृत प्रवेश का मामला है…रेलवे ने अपने ड्राईवर को भी क्लीन चिट दे दी है…रेलवे ने यह नही बताया कि आखिर अमृतसर स्टेशन से जब हादसे वाली जगह जोड़ा फाटक महज़ 2.5 किलोमीटर की दूरी पर था तो ट्रेन की 90 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से क्यों भगाई जा रही थी…आखिर क्यों महज कुछ ही दूरी पर अमृतसर जंक्शन पर रेलवे का इतना बड़ा महकमा इस कार्यक्रम के बारे में नही जान पाया जो पिछले कई दिनों से चल रहा था…रेलवे के ऊल-जलूल तर्क गले नहीं उतर रहे हैं। रेलवे का एक तरफ यह कहना है कि जिस जगह यह हादसा हुआ उससे थोड़ा पहले ही एक मोड़ है जिसके चलते ड्राईवर ट्रेक पर भीड़ का अंदाज़ा नहीं लगा पाया…फिर रेलवे की तरफ से ड्राईवर के बयान के आधार पर यह दावा किया जाता है कि धूएं की वजह से विज़बिल्टी कम थी…फिर रेलवे कहता है कि ड्राईवर ने भीड़ को देखकर ब्रेक लगाई थी लेकिन जैसे ही गाड़ी की रफतार कम हुई लोगों ने पत्थराव शुरु कर दिया…जिसकी वजह से गाडी़ की सवारियों की सुरक्षा के मध्यनज़र गाड़ी हादसे के स्थल पर न रोककर सीधे स्टेशन पर ही रोकी गई…वहीं गेटमेन का बयान है कि हादसे के बाद उसने ही स्टेशन पर इस बात की सूचना आधे घंटे बाद दी लेकिन तब तक ड्राईवर ने इसकी सूचना अधिकारियों को नहीं दी थी। ऐसे में रेलवे में भी इन हत्याओं का कोई दोषी नहीं है।

मरने वाले हैं अपनी मौत के जिम्मेदार!

इस हादसे में मारे गये लोगों की मौत का जिम्मेदार कोई भी नहीं है…इस हादसे में मरने वाले लोग ही अपनी मौत के लिए जिम्मेदार है…यह गरीब मेहनतकश अनपढ़ लोगों की भीड़ और उन भेड़ों से कत्तई अलग नहीं है जिनकी ज़रुरत चुनाव में वोट लेने के लिए होती है और चुनाव से पहले यां बाद में ज़रुरत के मुताबिक धरना प्रदर्शन करने,बसें भरनें,शक्ति प्रदर्शन करने,रेलियों में जिंदा-मुर्दाबाद के नारे लगाने के लिए होती है…कभी कभी नेता दूर प्रदेश से वोटर रुपी भेड़ों को महानगरों विशेषरुप से देश की राजधानी दिल्ली में ले आतें है…इनमें से न जाने कितने लोग फिर दिल्ली की सड़कों पर अपनी उन बसों गाडियों को ढूंढने के लिए भटकते हुए दिखाई देते हैं…जो कहीं खो जाती हैं।
कभी कभी नेता जी साडियां और कंबल बांटने के लिए ऐसी ही किसी भीड़ को जुटाते है….तांकि वो अपने आप को दानवीर कर्ण से बड़ा दानी साबित कर सकें और कंबल-साड़ी लेने वाले ये लोग छीना झपटी में मची भगदड़ में अपने ही लोगों को कुचल देते हैं यां कुचले जाते है…इन मौतों के लिए भी नेता जी जिम्मेदार नहीं होते है..ये लोग ही अपनी या अपनों की मौत के लिए जिम्मेदार होते हैं। आखिर नेता जी तो भला ही कर रहे थे…अमृतसर में भी यह चुने हुए जनप्रतिनिधि जो कुछ कर रहे थे इन लोगों के लिए ही तो कर रहे थे।

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