शिक्षा के साथ सामाजिक और नैतिक शिक्षा भी अनिवार्य हो:- सुनील भराला

जौनपुर: वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर में 28 से 30 अक्टूबर तक तीन दिवसीय “भारतीय विश्वविद्यालय शिक्षा पद्धति” विषय पर चल रहे राष्ट्रीय सम्मलेन में मुख्य अतिथि बीजेपी वरिष्ठ नेता सुनील भराला ने अपने संबोधन में सामान्य शिक्षा के साथ सामाजिक और नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता पर जोर दिए जाने की वकालत करते हुए जोर देकर कहा कि शिक्षा की वर्तमान स्तिथि में सुधार किए जाने की ज़रुरत है।

बीजेपी नेता सुनील भराला जी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत शिक्षा पद्धति के मामले में विश्व में तीसरा स्थान रखता है. अमेरिका ओर चीन के बाद भारत का नंबर आता है. 125 करोड़ की आबादी में भारत में 7 करोड़ ग्रेजुएट है, सभी प्रकार के ग्रेजुएट मिला कर. वर्तमान में भारत में 800 विश्वविद्यालय है जिसमे 44 केन्द्रीय विश्विद्यालय है, 540 राज्य के अधीन वाले वि.वि. है, 122 डीम्ड वि.वि. है ओर बाकि प्राइवेट वि.वि. है जिनमे लगभग 40,000 के करीब कॉलेज है जिसमे मेडिकल,इंजीनियरिंग आदि शामिल है. वर्तमान स्तिथि में सुधार की बहुत आवश्यकता है. अभी भी हमारा सिस्टम अंग्रेजो द्वारा विकसित की पद्धति पर ही कमोवेश चल रहा है जिसमे हमारी उच्च शिक्षा पद्धति क्लर्क बनाने की फैक्ट्री बन कर रह गई है।
भराल ने कहा कि इसकी बहुत आवश्यकता है की भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था रोज़गार उन्मुख हो ताकि कॉलेज में डिग्री मिलने के बाद हमारे ग्रेजुएट सरकार की तरफ न देखे की उसे सरकार नौकरी पर रख लेगी. कितने लोगो को सरकारी नौकरी मिल सकती है ? सभी को मिल सकती है क्या? 1% को मिल जाये तो बाकि 99% फिर भी क्या करे. हमे इस 99% के बारे में सोचना है ओर वि.वि. को रोज़गार प्रदान करने वाली शिक्षा जिसे हम वोकेशनल शिक्षा पद्धति कहते है. हमे उस ओर ध्यान देना होगा. उच्च सिखा पद्धति हमारा ऐसा हसी जिसमे प्रोफेशनलिज्म दक्षता का अभाव है ओर समाज के प्रति उत्तरदायी भी नही है. यह वि.वि. का उत्तरदायित्व है कि वे ऐसे ग्रेजुएट पैदा करे जो स्वावलंबी बने और अनेकोनेक व्यवसाय होते है जहाँ एक्सपर्ट की जरूरत होती है.

श्री भराला जी ने ये भी कहा कि वि.वि. और उध्योग जगत में पारस्परिक आदान प्रदान का नितान्त अभाव है उसे भी ठीक करना जरूरी है. उद्योगों को किस प्रकार के दक्षता वाले लोग चाहिये यह वि. वि. को पता ही नही है. आज भी हम 30-40 वर्ष पुराने शिलेब्स ही पढ़ा रहे है उसमे बदलाव भी जरूरी है. वि.वि. को राजनीती का अखाडा बना रखा है, राजनैतिक पार्टियों में अपने निजी लाभ के लिये. इसे राजनैतिक से भी मुक्त करना है. हमे सही अर्थ में भारत को एक विश्व गुरु बनाना है तो सबसे पहले वि.वि. को तक्षशिला वि.वि., नालंदा वि.वि. की स्तिथि के बारे में पढ़कर ऐसा लगता है हम पहले विश्व जगत को ज्ञान बाटते थे तो हममे आगे भी क्षमता है.।आज देश में 39 करोड़ लोग गरीब, झुग्गी झोपडी परिवार के बच्चे कमज़ोर प्राइमरी शिक्षा के अभाव के कारण से आगे नही बढ़ पाते है इस कारण से शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे छात्र छात्रा की नीव कमज़ोर रह जाती है. इसके लिये आज विश्वविद्यालय महा वि.वि. में वर्तमान के युवा भारत को परम वैभव पर ले जाने की सोच रखने वाले ऐसे युवा झुग्गी झोपडी बस्तियों में जा करके उन परिवारों के बच्चो को प्रेरित करने की आवश्यकता है. शिक्षा पद्धति के महत्वपूर्ण सम्मेलन में यह सही दिशा की ओर अग्रसर होगा.

अंत में भराला जी ने कुलपति डॉ. राजाराम यादव जी को बहुत बधाई के साथ कहना चाहता हूँ कि अनादिकाल की परम्परा को तोड़ करके विश्वविद्यालय के प्रांगण में श्री राम कथा का विमोचन करा करके छात्र- छात्राओं को धर्म व् हिन्दुत्व के प्रति कार्य करने का जो साहस किया वो सरहनीय कदम है. अन्य विश्वविद्यालयों में भी यह अपनाना चाहिये.

वि.वि. के कुलपति राजाराम यादव तथा उनके सहयोगी दोनों के दुआरा स्मृति चिन्ह दे करके सम्मानित किया गये.

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