लोकसभा चुनाव में दिल्ली की एक सीट पर भाजपा उतार सकती है यह फिल्मी सितारा और दूसरी सीट पर.. !

संदीप शर्मा

लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने दिल्ली की सात में से पांच सीटों पर प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतार दिया है,पर दो सीटों पर अब भी पेच फंसा हुआ है। उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर स्थानीय और बाहरी उम्मीदवार उतारने को लेकर पार्टी गहन मंथन कर रही है। पहली सूची में घोषित पांच सीटों पर केवल मनोज तिवारी पर ही शीर्ष नेतृत्व ने भरोसा जताया है,बाकि चार नए चेहरे दिए हैं । अब निगाहें दोनों सीट पर हैं कि इस पर पार्टी आलाकमान क्या फैसला लेता है । पिछले दो लोकसभा चुनावों में पूर्वी दिल्ली लोकसभा व उत्तर पश्चिमी लोकसभा में पैराशूट उम्मीदवार उतारे गए थे।
अब पार्टी नेतृत्व इन दोनों सीटों पर उम्मीदवारों के नामों पर क्या करेगा इस पर सियासी गलियारों में अलग अलग  क़यास लगाये जा रहे हैं ।

पार्टी की दूसरी सूची आज यां कल में ही आने की संभावना जताई जा रही है । इस सूची में दिल्ली की इन दो सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के नामों का एलान हो जाएगा। इन दोनों सीटों के लिए प्रदेश भाजपा के राष्ट्रीय व प्रदेश पदाधिकारियों से लेकर, विधायक,निगम पार्षद, पूर्व मेयर तक दावेदारी ठोकते नज़र आ रहे हैं।

पिछले दो लोकसभा चुनाव में उत्तर-पश्चिमी व पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से भाजपा ने बाहरी उमीदवारों को ही टिकट दिया था। पूर्वी दिल्ली की बात करें तो 2014 में महेश गिरी को तो 2019 में गौतम गंभीर को पार्टी ने चुनावी मैदान में उतार कर जीत दर्ज की । गौतम गंभीर सियासी मैदान में बहुत गंभीर दिखाई नही दिए और उन्होंने इस बार राजनीति को अलविदा कह दिया । लोगों से उन्होंने बेशक सम्पर्क नही रखा लेकिन उन्होंने दिल्ली की जनता से जुड़े मुद्दों पर समय समय पर गंभीर रुख दिखाया । यही नहीं कोरोना काल में भी गौतम गंभीर की NGO ने लोगों की खूब मदद की । हालांकि कार्यकर्ताओं से मिलने व पार्टी कार्यक्रमों को लेकर उनका रवैया बेशक उदासीन रहा ।

इसी तरह उत्तर-पश्चिमी दिल्ली लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 2014 में डॉ. उदित राज को और 2019 में हंस राज हंस को चुनावी मैदान में उतारा था। दोनों ही बार इन दोनों सीटों पर चेहरे बदले गए । पार्टी से टिकट न मिलने से नाराज़ उदित राज दल बदल कर कांग्रेस में शामिल हो गए,वहीं हंसराज हंस का टिकट भी कटने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। हो सकता है कि हंसराज हंस को पार्टी पंजाब से उमीदवार बना दे ।
ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि इन सीटों पर क्या इस बार भी पार्टी किन्ही नए चेहरों को उतारेगी यां फिर संगठन से इस बार किसी को टिकट देगी ?

दोनों सीटों पर रेस में शामिल कई नाम

पूर्वी दिल्ली सीट की बात करें तो इस सीट पर दौड़ में प्रदेश भाजपा के कई पदाधिकारी शामिल है। इसमें प्रदेश अध्यक्ष से लेकर महामंत्री,उपाध्यक्ष, विधायक भी रेस में शामिल है । लगभग यही स्थिति उत्तर-पश्चिमी दिल्ली की भी है। यहां से भाजपा नेता योगेंद्र चंदोलिया,राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम,कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई पूर्व IRS अधिकारी प्रीता हरित,अनुसूचित जाति मोर्चा अध्यक्ष मोहन लाल गिहारा,गुगन सिंह,टिकट दावेदारी के दौड़ में शामिल हैं।

क्या फिर चौकाने वाला फैसला ले सकती है पार्टी !

वहीं चर्चाओं में यह भी है भाजपा आलाकमान फिर से इन दो सीटों में एक सीट पर किसी बड़े सेलेब्रिटी फिल्मी सितारे जिसमे सोनू सूद का चौकाने वाला नाम हो सकता है । बतादें कोरोना काल मे सोनू सूद ने जिस तरह से लोगो की मदद की उसे लेकर वह खूब चर्चाओं में आये व लोगों ने उनकी खूब तारीफ भी की । सोनू सूद की भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष से एक बार मुलाकात भी हुई थी तब भी उनकी भाजपा में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे,हालांकि इसके बाद उनकी केजरीवाल से भी मुलाकात हुई थी। यह सब तब आई गई हो गईं । वैसे  सोनू सूद की बहन कांग्रेस पार्टी की टिकट पर पंजाब में चुनाव लड़ चुकी हैं । अब बताया जा रहा है कि सोनू सूद फिर से भाजपा के सम्पर्क में हैं । वहीं दूसरी सीट पर संघ पृष्ठभूमि वाले आयुक्त स्तर के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता हैं । दरअसल केजरीवाल आयकर विभाग के कमिश्नर रहे हैं ऐसे मे  केजरीवाल सरकार के भृष्टाचार की पोल पट्टी  खोलने के लिए आयुक्त स्तर के इस प्रशासनिक अधिकारी को भी चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है ।

पेराशूट केन्डेट्स पर फंस रहा यह पेंच

पेराशूट कैंडीडेट के प्रयोग को दोहराने में एक पेच है, उत्तर-पश्चिमी दिल्ली लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 2014 में डॉ. उदित राज को और 2019 में हंस राज हंस को चुनावी मैदान में उतारा था। वहीं उत्तर पूर्वी सीट पर 2014 में महेश गिरी व फिर 2019 में गौतम गंभीर को उतारा गया । दोनों ही बार चेहरे बदले गए थे। इस बार पार्टी के लिए मुश्किल यह है कि विपक्षी गठबंधन जहां बीजेपी के पेराशूट कैंडिडेट्स को मुद्दा बना रहा है, वही स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है । यही नही बाहरी उम्मीदवार जीतने के बाद पांच साल तक क्षेत्र से नदारद रहना व स्थानीय समस्या से कोई सरोकार न रखना भी एक मुद्दा है जो पार्टी के खिलाफ जाता है लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि लोकसभा चुनाव में मोदी के चेहरे पर ही मतदाता भाजपा प्रत्याशियों को वोट देता है । फिर वह कोई भी क्यों न हो । ऐसे में मोदी के चेहरे के सामने प्रत्याशियों के चेहरे गौण हो जाते हैं । फिर बिखरे हुए विपक्ष के सामने भाजपा राम मंदिर, धारा 370 व 10 वर्ष की मोदी सरकार की लाभार्थी योजनाओं के आधार पर सवार इस बार भाजपा 370 व NDA 400 पार का दावा कर रही है ।

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